भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वहीं से / ओम प्रभाकर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=ओम प्रभाकर | |रचनाकार=ओम प्रभाकर | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
<poem> | <poem> | ||
हम जहाँ हैं | हम जहाँ हैं | ||
पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
हम जहाँ हैं | हम जहाँ हैं | ||
वहीं से आगे बढे़ंगे | वहीं से आगे बढे़ंगे | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
13:45, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
हम जहाँ हैं
वहीं से आगे बढे़ंगें
देश के बंजर समय के
बाँझपन में
याकि अपनी लालसाओं के
अंधेरे सघन वन में
या अगर हैं
परिस्थितियों की तलहटी में
तो वहीं से बादलों के रूप में
ऊपर उठेंगे
हम जहाँ हैं वहीं से
आगे बढे़ंगे
यह हमारी नियति है
चलना पडे़गा
रात में दीपक
दिवस में सूर्य बन जलना पडे़गा
जो लडा़ई पूर्वजों ने छोड़ दी थी
हम लडे़ंगे
हम जहाँ हैं
वहीं से आगे बढे़ंगे