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"मेघ जहाँ-तहाँ दामिनी है अरु दीप जहाँ-तहाँ जोति है भातें / रघुनाथ" के अवतरणों में अंतर
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13:47, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
मेघ जहाँ-तहाँ दामिनी है अरु दीप जहाँ-तहाँ जोति है भातें ।
केस जहाँ-तहाँ माँग सुबेस है है गिरि गेरू तहाँ रंग रातें ।
मोहन सों मिलिबे को बलाल्यों मैं रघुनाथ कहौ हठि यातें ।
होत नयो नहीं आयो चल्यो रंग साँवरे गोरे को संग सदा ते।
रघुनाथ का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।