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"वास्तविकता / अनुभूत क्षण / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर | |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर | ||
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− | हर तार टूटा | + | हर तार टूटा |
− | सँवरते-सँवरते | + | सँवरते-सँवरते |
− | कि फिरफ़िर उलझता गया ! | + | कि फिरफ़िर उलझता गया! |
− | बंध हर और कसता गया ; | + | बंध हर और कसता गया; |
− | सूत्र क्रमश: सुलझते-सुलझते | + | सूत्र क्रमश: सुलझते-सुलझते |
− | उलझता गया, | + | उलझता गया, |
− | हर क़दम पर | + | हर क़दम पर |
− | सँवरते-सँवरते ! | + | सँवरते-सँवरते! |
− | ज़िन्दगी कट गयी ज़िन्दगी | + | ज़िन्दगी कट गयी ज़िन्दगी |
− | सीखते-सीखते, | + | सीखते-सीखते, |
− | खो गये कंठ-स्वर | + | खो गये कंठ-स्वर |
− | चीखते-चीखते, | + | चीखते-चीखते, |
− | शास्त्र संगीत का | + | शास्त्र संगीत का |
− | सीखते-सीखते ! < | + | सीखते-सीखते! |
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13:47, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
सँभलते - सँभलते...
समय तीव्र गति से गुज़रता गया!
सब व्यवस्थित बिखरता गया!
हस्तगत था अरे जो
अचानक फिसलता गया ....
हर क़दम पर
सँभलते-सँभलते!
हर तार टूटा
सँवरते-सँवरते
कि फिरफ़िर उलझता गया!
बंध हर और कसता गया;
सूत्र क्रमश: सुलझते-सुलझते
उलझता गया,
हर क़दम पर
सँवरते-सँवरते!
ज़िन्दगी कट गयी ज़िन्दगी
सीखते-सीखते,
खो गये कंठ-स्वर
चीखते-चीखते,
शास्त्र संगीत का
सीखते-सीखते!