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"सुबह हमसे बाहर हो रही थी / चन्द्रकान्त देवताले" के अवतरणों में अंतर
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− | हम लोगों से बाहर सुबह हो रही थी | + | हम लोगों से बाहर सुबह हो रही थी |
− | हम खड़े थे ख़ामोशी के भीतर | + | हम खड़े थे ख़ामोशी के भीतर |
− | पानी की तलवार चमकाते हुए | + | पानी की तलवार चमकाते हुए |
− | गर्मी थी | + | गर्मी थी |
− | मई से ज्यादह | + | मई से ज्यादह |
− | गर्मी से अधिक थी मजबूरी पानी की | + | गर्मी से अधिक थी मजबूरी पानी की |
− | ख़्वाहिश से कम नहीं थी गले में प्यास | + | ख़्वाहिश से कम नहीं थी गले में प्यास |
− | प्यास थी बहते हुए पानी के लिए | + | प्यास थी बहते हुए पानी के लिए |
− | पानी था तलवार में तना हुआ | + | पानी था तलवार में तना हुआ |
− | नदी थी ताबूत में | + | नदी थी ताबूत में |
− | ताबूत था नहीं हमारा | + | ताबूत था नहीं हमारा |
− | कंधे थे हमारे ताबूत ढोते हुए | + | कंधे थे हमारे ताबूत ढोते हुए |
− | पाँव थे हमारे | + | पाँव थे हमारे |
− | पर चाबुक थे उनके | + | पर चाबुक थे उनके |
− | उनके थे उन्हीं के हाथों में चाबुक | + | उनके थे उन्हीं के हाथों में चाबुक |
− | जो दौड़ा रहे थे पाँवों को हमारे | + | जो दौड़ा रहे थे पाँवों को हमारे |
− | दोपहरी थी सदी जितनी | + | दोपहरी थी सदी जितनी |
− | पसीना था नदी जितना | + | पसीना था नदी जितना |
− | नदी ताबूत में थी | + | नदी ताबूत में थी |
− | ताबूत था डिबिया बराबर | + | ताबूत था डिबिया बराबर |
− | चाबुक थे तिनके के समान | + | चाबुक थे तिनके के समान |
फिर भी सुबह हमसे बाहर हो रही थी | फिर भी सुबह हमसे बाहर हो रही थी | ||
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15:31, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
हम लोगों से बाहर सुबह हो रही थी
हम खड़े थे ख़ामोशी के भीतर
पानी की तलवार चमकाते हुए
गर्मी थी
मई से ज्यादह
गर्मी से अधिक थी मजबूरी पानी की
ख़्वाहिश से कम नहीं थी गले में प्यास
प्यास थी बहते हुए पानी के लिए
पानी था तलवार में तना हुआ
नदी थी ताबूत में
ताबूत था नहीं हमारा
कंधे थे हमारे ताबूत ढोते हुए
पाँव थे हमारे
पर चाबुक थे उनके
उनके थे उन्हीं के हाथों में चाबुक
जो दौड़ा रहे थे पाँवों को हमारे
दोपहरी थी सदी जितनी
पसीना था नदी जितना
नदी ताबूत में थी
ताबूत था डिबिया बराबर
चाबुक थे तिनके के समान
फिर भी सुबह हमसे बाहर हो रही थी