"सूरीनाम नदी तट पर गंगा - २ / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर
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लहरें पढती हैं | लहरें पढती हैं | ||
चांद की रूपहली लिखावट | चांद की रूपहली लिखावट | ||
− | + | और पुलक से खिल पड़ती है | |
गंगा की स्मृतियों की | गंगा की स्मृतियों की | ||
कथा पढ़कर। | कथा पढ़कर। | ||
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चांदनी चूमकर | चांदनी चूमकर | ||
आती है गंगा नदी को | आती है गंगा नदी को | ||
− | + | और फिर-फिर चूमती है | |
सूरीनामी नदी को। | सूरीनामी नदी को। | ||
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सूरीनाम नदी की जल-देह में है | सूरीनाम नदी की जल-देह में है | ||
− | + | अटलांटिक महासागर का अंतरंग आवेग | |
− | तट को समेटता | + | तट को समेटता और समाता हुआ |
पारामारिबो की धरती पर | पारामारिबो की धरती पर | ||
लिखता है अपनी ही प्रणय-पाती। | लिखता है अपनी ही प्रणय-पाती। | ||
पंक्ति 39: | पंक्ति 39: | ||
प्रवासी भारतीय | प्रवासी भारतीय | ||
जाता है सूयार्स्त के बाद | जाता है सूयार्स्त के बाद | ||
− | + | और सुनता है नदी की आवाज | |
मौन होकर | मौन होकर | ||
शायद लहिरयों में से छन आए | शायद लहिरयों में से छन आए | ||
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तट-माटी की देह में | तट-माटी की देह में | ||
खोजता है - आजी की गोद | खोजता है - आजी की गोद | ||
− | + | और आजा की छाती | |
जिसे बचपन में | जिसे बचपन में | ||
कभी लीपा था अपनी लार से | कभी लीपा था अपनी लार से | ||
प्यार से भरकर | प्यार से भरकर | ||
− | + | और पिया था - | |
− | आजी के | + | आजी के चुंबन में से |
आजादी की चाहत। | आजादी की चाहत। | ||
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जैसे आजी के आंचल में | जैसे आजी के आंचल में | ||
सौंपता हैं अपने आंसू | सौंपता हैं अपने आंसू | ||
− | + | और नदी के बहाने | |
छूता है अपने पूवर्जों के | छूता है अपने पूवर्जों के | ||
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15:40, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
कृष्णपक्ष को
पार करके आया हुआ चंदर्मा
शुक्लपक्ष की खुशी
लिखता है सूरीनामी नदी के वक्ष पर।
लहरें पढती हैं
चांद की रूपहली लिखावट
और पुलक से खिल पड़ती है
गंगा की स्मृतियों की
कथा पढ़कर।
चांदनी चूमकर
आती है गंगा नदी को
और फिर-फिर चूमती है
सूरीनामी नदी को।
लहरें गाती हैं
नदी की वक्ष-गाथ
सागर में समाने का सुख
गहरी रात गए
नदी के आवेग में होती है
संगम की आतुरता
तट से निबर्ंध होकर
समा जाने की आकुलता।
सूरीनाम नदी की जल-देह में है
अटलांटिक महासागर का अंतरंग आवेग
तट को समेटता और समाता हुआ
पारामारिबो की धरती पर
लिखता है अपनी ही प्रणय-पाती।
सूरीनाम नदी के तट पर
प्रवासी भारतीय
जाता है सूयार्स्त के बाद
और सुनता है नदी की आवाज
मौन होकर
शायद लहिरयों में से छन आए
आजी की पुकार
आजा की गुहार
तट-माटी की देह में
खोजता है - आजी की गोद
और आजा की छाती
जिसे बचपन में
कभी लीपा था अपनी लार से
प्यार से भरकर
और पिया था -
आजी के चुंबन में से
आजादी की चाहत।
गहरी रात गए
सोई नदी की आंखों में
सौंप आता है
आजादी का सुख
अपनी आजी को बतलाने के लिए
आंसू पोंछी हथेली को
डुबोता है सूरीनाम नदी में
जैसे आजी के आंचल में
सौंपता हैं अपने आंसू
और नदी के बहाने
छूता है अपने पूवर्जों के