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Kavita Kosh से
आज, अगर छीनकर नहीं ला सकते,
::::मरघट हुए गाँव !
अगर इकट्ठा न कर प्पोपाओ , तमाम सूखे हुए आँसू !
अगर... अगर...
चिनगारी बनकर फट न पड़ें