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"धूल भरी दोपहरी / नेमिचन्द्र जैन" के अवतरणों में अंतर
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अलसता होती गहरी । | अलसता होती गहरी । | ||
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छाई है; बहता जाता है पवन अरुक संन्यासी | छाई है; बहता जाता है पवन अरुक संन्यासी | ||
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कौन देश की ठहरी ? | कौन देश की ठहरी ? | ||
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आ कर यों चल दिए कहाँ ओ जग के चंचल प्रहरी ? | आ कर यों चल दिए कहाँ ओ जग के चंचल प्रहरी ? | ||
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धूल भरी दोपहरी । | धूल भरी दोपहरी । | ||
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(1937 में बरुआसागर में रचित) | (1937 में बरुआसागर में रचित) | ||
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22:54, 2 जनवरी 2010 का अवतरण
धूल भरी दोपहरी
धरती के कण-कण में गूँजी आकुल-सी स्वर-लहरी ।
सरल पल आते-जाते
करुण सिकता भर लाते
एक मूर्च्छना-सी प्राणों पर बेमाने बरसाते
अलसता होती गहरी ।
मधुर अनमनी उदासी
एक धूमिल रेखा-सी--
छाई है; बहता जाता है पवन अरुक संन्यासी
कौन देश की ठहरी ?
आ कर यों चल दिए कहाँ ओ जग के चंचल प्रहरी ?
धूल भरी दोपहरी ।
(1937 में बरुआसागर में रचित)