भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पाँच वर्षों का मुकम्मल / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष }}[[Category:गज़...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अश्वघोष
 
|रचनाकार=अश्वघोष
 
|संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष  
 
|संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष  
}}[[Category:गज़ल]]<poem>
+
}}
 +
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem>
 
पाँच वर्षों का मुकम्मल दीजिए पहले हिसाब।
 
पाँच वर्षों का मुकम्मल दीजिए पहले हिसाब।
 
फिर करेंगे हम दुबारा वोट का वादा जनाब।
 
फिर करेंगे हम दुबारा वोट का वादा जनाब।
  
 
आप तो संसद में बैठे ऐश ही कारते रहे
 
आप तो संसद में बैठे ऐश ही कारते रहे
और खाली पेट हमने भूख का देखा अज़ाब।
+
और ख़ाली पेट हमने भूख का देखा अज़ाब।
  
जब तलक हम एक थे खुशहाल थे, आबाद थे
+
जब तलक हम एक थे ख़ुशहाल थे, आबाद थे
आप ने जब फुट डाली तो हो गए ख़ाना-ख़राब।
+
आप ने जब फूट डाली हो गए ख़ाना-ख़राब।
  
 
ये नया मौसम हमें कुछ रास आया था मगर
 
ये नया मौसम हमें कुछ रास आया था मगर

15:47, 3 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

पाँच वर्षों का मुकम्मल दीजिए पहले हिसाब।
फिर करेंगे हम दुबारा वोट का वादा जनाब।

आप तो संसद में बैठे ऐश ही कारते रहे
और ख़ाली पेट हमने भूख का देखा अज़ाब।

जब तलक हम एक थे ख़ुशहाल थे, आबाद थे
आप ने जब फूट डाली हो गए ख़ाना-ख़राब।

ये नया मौसम हमें कुछ रास आया था मगर
आपके ही मालियों ने नोच डाले सब गुलाब।

आपने सोचा कि फिर से डगमगा जाएँगे हम
अब न बहकाएगी हमको आपकी देसी शराब।