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"जो भी सपना / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

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जो भी सपना तेरे-मेरे दरमियाँ रह जाएगा
 
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बस वही इस ज़िन्दगी की दास्ताँ रह जाएगा
 
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वरना घुट कर सबके भीतर ये धुआँ रह जाएगा।
 
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फट गया गर यूँ ही बादल, तू कहाँ रह जाएगा।
 
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15:57, 3 जनवरी 2010 के समय का अवतरण


जो भी सपना तेरे-मेरे दरमियाँ रह जाएगा
बस वही इस ज़िन्दगी की दास्ताँ रह जाएगा

कट गए है हाथ तो आवाज़ से पथराव कर
याद सबको यार मेरे ये समाँ रह जाएगा।

भूख है तो भूख का चर्चा भी होना चाहिए
वरना घुट कर सबके भीतर ये धुआँ रह जाएगा।

ये धुँधलके हैं समय के तू अभी परवाज़ कर
फट गया गर यूँ ही बादल, तू कहाँ रह जाएगा।

जो भी पूछे ये अदालत बोल देना बेझिझक
तू न रह पाया तो क्या तेरा बयाँ रह जाएगा।