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18:43, 4 जनवरी 2010 का अवतरण
दीवार दर ख़ामोश दरीचों प' यास है
क्या जाने शहर किसलिए इतना उदास है
बिछड़े हुओं की याद कहीं आस-पास है
बारिश की पहली शाम का मंज़र उदास है
उन की किसे ख़बर है पता किस से पूछिए
बिछड़े हुओं की याद कहीं आस-पास है
इन सोच में खड़ा हूँ उसे क्या जवाब दूँ
वो मुझ से पूछता है कि तू क्यूँ उदास है
अब के बरस भी वो तो सुबकसर ही जाएगा
सावन से क्या बुझेगी वो सहरा की प्यास है
लगता है जंगलों की ज़मीं पर बसी है वो
बस्ती में इतना किसलिए ख़ौफ़ो हिरास है
बारिश ने जाते-जाते पलट कर कहा 'निज़ाम'
तेरी ये उम्र है कि सुलगती कपास है