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"दिखाना / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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जब सारा पानी जमकर हो जाता है बर्फ़ | जब सारा पानी जमकर हो जाता है बर्फ़ | ||
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वह चुपके से बाहर खिसक लेता है | वह चुपके से बाहर खिसक लेता है | ||
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तब उसकी तलहटी में वह फैलाता है अपनी चांदनी | तब उसकी तलहटी में वह फैलाता है अपनी चांदनी | ||
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मछलियों का तड़पना। | मछलियों का तड़पना। | ||
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10:42, 5 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
(आंद्रेई तारकोवस्की को पढ़ते हुए)
तैरता हुआ चांद
मछलियों के जाल में नहीं फँसता
जब सारा पानी जमकर हो जाता है बर्फ़
वह चुपके से बाहर खिसक लेता है
जब झील सूख जाती है
तब उसकी तलहटी में वह फैलाता है अपनी चांदनी
ताकि रातों को भी दिखाई दे
मछलियों का तड़पना।