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"मनुष्यों की तरह / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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वे न फल देते हैं न छाया | वे न फल देते हैं न छाया | ||
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एक हरे सम्मोहन से खींचते हैं | एक हरे सम्मोहन से खींचते हैं | ||
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दबोच कर सारा ख़ून चूस लेते हैं | दबोच कर सारा ख़ून चूस लेते हैं | ||
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उस वक़्त बिल्कुल मनुष्यों की तरह | उस वक़्त बिल्कुल मनुष्यों की तरह | ||
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एक भी वृक्ष आगे नहीं बढ़ता। | एक भी वृक्ष आगे नहीं बढ़ता। | ||
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10:51, 5 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
कोई-कोई वृक्ष
बिल्कुल मनुष्यों की तरह होते हैं
वे न फल देते हैं न छाया
एक हरे सम्मोहन से खींचते हैं
और पहुँच में आते ही
दबोच कर सारा ख़ून चूस लेते हैं
उस वक़्त बिल्कुल मनुष्यों की तरह
हो जाता है सारा जंगल
एक भी वृक्ष आगे नहीं बढ़ता।