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नये सुरों में शिंजिनी बजा रहीं जवानियाँ
:चढ़ी हुई प्रभंजनों प’ आ रहीं जवानियाँ।
घटा को फाड़ व्योम बीच गूँजती दहाड़ है,
जमीन डोलती है और डोलता पहाड़ है;
भुजंग दिग्गजों से, कूर्मराज त्रस्त कोल से,
धरा उछल-उछल के बात पूछती खगोल से।
:कि क्या हुआ है सृष्टि को? न एक अंग शान्त है;
:प्रकोप रुद्र का? कि कल्पनाश है, युगान्त है?
:जवानियों की धूम-सी मचा रहीं जवानियाँ।
समस्त सूर्य-लोक एक हाथ में लिये हुए,
दबा के एक पाँव चन्द्र-भाल पर दिये हुए,
खगोल में धुआँ बिखेरती प्रतप्त श्वास से,
भविष्य को पुकारती हुई प्रचण्ड हास से;
:उछाल देव-लोक को मही से तोलती हुई,
:मनुष्य के प्रताप का रहस्य खोलती हुई;
:विराट रूप विश्व को दिखा रहीं जवानियाँ।
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