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"दोपहर के अलसाये पल / पाब्लो नेरुदा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | तुम्हारी समन्दर-सी गहरी आँखों में, | |
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− | + | लाल दहकती निशानियाँ, तुम्हारी खोई आँखों में, | |
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− | मेरे दूर के सजन, तुम ने अँधेरा ही रखा | + | मेरे दूर के सजन, तुम ने अँधेरा ही रखा |
− | तुम्हारे हावभावोँ मेँ उभरा यातनोँ का किनारा - | + | तुम्हारे हावभावोँ मेँ उभरा यातनोँ का किनारा- |
− | अलसाई दोपहरी | + | अलसाई दोपहरी में, मैं, फिर उदास जाल फेंकता हूँ - |
− | उस दरिया | + | उस दरिया में , जो तुम्हारे नैया से नयनों में कैद है ! |
− | रात के | + | रात के पंछी, पहले उगे तारों को, चोंच मारते हैँ - |
− | और वे, मेरी आत्मा की ही तरहा, और दहक उठते | + | और वे, मेरी आत्मा की ही तरहा, और दहक उठते हैं ! |
− | रात, अपनी | + | रात, अपनी परछाईं की ग़्होडी पर रसवार दौडती है , |
− | अपनी नीली फुनगी के रेशम - सी लकीरोँ को छोडती हुई ! | + | अपनी नीली फुनगी के रेशम - सी लकीरोँ को छोडती हुई ! |
− | + | '''अंग्रेज़ी से अनुवाद : लावण्या | |
+ | </poem> |
10:40, 13 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
तुम्हारी समन्दर-सी गहरी आँखों में,
फेंकता पतवार मैं, उनींदी दोपहरी में
उन जलते क्षणों में, मेरा एकाकीपन,
और घना होकर, जल उठता है - डूबते माँझी की तरह
लाल दहकती निशानियाँ, तुम्हारी खोई आँखों में,
जैसे "दीप ~ स्तम्भ" के समीप, मँडराता जल !
मेरे दूर के सजन, तुम ने अँधेरा ही रखा
तुम्हारे हावभावोँ मेँ उभरा यातनोँ का किनारा-
अलसाई दोपहरी में, मैं, फिर उदास जाल फेंकता हूँ -
उस दरिया में , जो तुम्हारे नैया से नयनों में कैद है !
रात के पंछी, पहले उगे तारों को, चोंच मारते हैँ -
और वे, मेरी आत्मा की ही तरहा, और दहक उठते हैं !
रात, अपनी परछाईं की ग़्होडी पर रसवार दौडती है ,
अपनी नीली फुनगी के रेशम - सी लकीरोँ को छोडती हुई !
अंग्रेज़ी से अनुवाद : लावण्या