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"लिख सकूँ तो (कविता) / नईम" के अवतरणों में अंतर
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परखना चाहता हूँ। | परखना चाहता हूँ। | ||
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11:33, 13 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
लिख सकूँ तो—
प्यार लिखना चाहता हूँ,
ठीक आदमजात सा
बेखौफ़ दिखना चाहता हूँ।
थे कभी जो सत्य, अब केवल कहानी
नर्मदा की धार सी निर्मल रवानी,
पारदर्शी नेह की क्या बात करिए-
किस क़दर बेलौस ये दादा भवानी।
प्यार के हाथों
घटी दर पर बज़ारों,
आज बिकना चाहता हूँ।
आपदा-से आये ये कैसे चरण हैं ?
बनकर पहेली मिले कैसे स्वजन हैं ?
मिलो तो उन ठाकुरों से मिलो खुलकर—
सतासी की उम्र में भी जो ‘सुमन’ हैं
कसौटी हैं वो कि जिसपर-
नेह के स्वर
ताल यति गति लय
परखना चाहता हूँ।