भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जन्म / राजेश जोशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: '''जन्म''' ऊट की पीठ पर अपनी खटिया बाँध कर चल देंगे अभी बंजारे दूर तक …)
 
छो
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
'''जन्म'''
 
'''जन्म'''
  
ऊट की पीठ पर अपनी खटिया बाँध कर
+
ऊट की पीठ पर अपनी खटिया बाँध कर<br\>
चल देंगे अभी बंजारे
+
चल देंगे अभी बंजारे<br\>
 
दूर तक उनके साथ साथ जायेगी मेरी बेचैन आत्मा.
 
दूर तक उनके साथ साथ जायेगी मेरी बेचैन आत्मा.
  
धूप के साथ सरकती किसी पेड़ की छाँव में
+
धूप के साथ सरकती किसी पेड़ की छाँव में<br\>
डाल देंगे वे अपना डेरा और पकायेंगे
+
डाल देंगे वे अपना डेरा और पकायेंगे<br\>
बाटियाँ और दाल
+
बाटियाँ और दाल<br\>
छाँह के साथ सरकते रहेंगे वे दिनभर
+
छाँह के साथ सरकते रहेंगे वे दिनभर<br\>
 
घड़ी की सुइयों के साथ जैसे सरकता रहता है समय.
 
घड़ी की सुइयों के साथ जैसे सरकता रहता है समय.
  
कितनी अनमोल, कितनी अद्वतीय होती हैं वे साधरण चीजें
+
कितनी अनमोल, कितनी अद्वतीय होती हैं वे साधरण चीजें<br\>
 
जिनके सहारे चलता है यह महाजीवन.
 
जिनके सहारे चलता है यह महाजीवन.
  
वो छोटी सी काली हंडिया जिसमें पकाई जाती है दाल
+
वो छोटी सी काली हंडिया जिसमें पकाई जाती है दाल<br\>
और रख ली जाती है जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ.
+
और रख ली जाती है जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ.<br\>
पुराने अखबार का वो कोई छोटा सा टुकड़ा
+
पुराने अखबार का वो कोई छोटा सा टुकड़ा<br\>
जिसमें बाँध कर रखा जाता है नमक
+
जिसमें बाँध कर रखा जाता है नमक<br\>
इतने सहेज कर रखती है वह बंजारन औरत नमक को
+
इतने सहेज कर रखती है वह बंजारन औरत नमक को<br\>
 
काग़ज में बाँध लिया हो जैसे उसने पूरा अरब सागर.
 
काग़ज में बाँध लिया हो जैसे उसने पूरा अरब सागर.
  
बंजारों ने अभी डेरा डाला है मेरे घर के ऎन सामने
+
बंजारों ने अभी डेरा डाला है मेरे घर के ऎन सामने<br\>
किसी फल की फाँक की तरह आसमान पर लटका है
+
किसी फल की फाँक की तरह आसमान पर लटका है<br\>
कार्तिक की सप्तमी का चाँद
+
कार्तिक की सप्तमी का चाँद<br\>
सड़क के एक किनारे, पान की गुमटियों के पीछे
+
सड़क के एक किनारे, पान की गुमटियों के पीछे<br\>
एक छोटे से टाट की आड़ और लालटेन की मद्धिम रोशनी में
+
एक छोटे से टाट की आड़ और लालटेन की मद्धिम रोशनी में<br\>
बंजारन बहू ने जन्म दिया है अभी अभी
+
बंजारन बहू ने जन्म दिया है अभी अभी<br\>
 
एक बच्चे को!
 
एक बच्चे को!
  
 
० अक्टूबर १९८७
 
० अक्टूबर १९८७

23:11, 15 जनवरी 2010 का अवतरण

जन्म

ऊट की पीठ पर अपनी खटिया बाँध कर<br\> चल देंगे अभी बंजारे<br\> दूर तक उनके साथ साथ जायेगी मेरी बेचैन आत्मा.

धूप के साथ सरकती किसी पेड़ की छाँव में<br\> डाल देंगे वे अपना डेरा और पकायेंगे<br\> बाटियाँ और दाल<br\> छाँह के साथ सरकते रहेंगे वे दिनभर<br\> घड़ी की सुइयों के साथ जैसे सरकता रहता है समय.

कितनी अनमोल, कितनी अद्वतीय होती हैं वे साधरण चीजें<br\> जिनके सहारे चलता है यह महाजीवन.

वो छोटी सी काली हंडिया जिसमें पकाई जाती है दाल<br\> और रख ली जाती है जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ.<br\> पुराने अखबार का वो कोई छोटा सा टुकड़ा<br\> जिसमें बाँध कर रखा जाता है नमक<br\> इतने सहेज कर रखती है वह बंजारन औरत नमक को<br\> काग़ज में बाँध लिया हो जैसे उसने पूरा अरब सागर.

बंजारों ने अभी डेरा डाला है मेरे घर के ऎन सामने<br\> किसी फल की फाँक की तरह आसमान पर लटका है<br\> कार्तिक की सप्तमी का चाँद<br\> सड़क के एक किनारे, पान की गुमटियों के पीछे<br\> एक छोटे से टाट की आड़ और लालटेन की मद्धिम रोशनी में<br\> बंजारन बहू ने जन्म दिया है अभी अभी<br\> एक बच्चे को!

० अक्टूबर १९८७