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|भाषा=खड़ी बोली
}}
 '''विवाह–गीत'''<poem>अन्दर से लाड्डो बाहर निकलो <br> कँवर चौंरी चढ़ गयौ <br> होय लो न रुकमण सामणी ।<br> -मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया<br> लखिया सा बाबा मेरी सामणी ।<br>सामणी।तेरे बाबा को अपणी दादी दिला दूँ<br> होय लो न रुकमण सामणी ।<br>सामणी।-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया<br> लखिया सा ताऊ मेरी सामणी<br> तेरे ताऊ को अपणी ताई दिला दूँ<br> होय लो न रुकमण सामणी<br> -मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया<br> लखिया सा भाई मेरी सामणी<br> तेरे भाई को अपणी बाहण दिला दूँ,<br> होय लो न रुकमण सामणी<br> -मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया<br> लखिया सा बाबुल मेरी सामणी<br> तेरे बाबुल को अपणी अम्मा दिला दूँ<br> होय लो न रुकमण सामणी ।सामणी।<br/poem>