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|रचनाकार=इक़बाल
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कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुन्तज़र<ref>चिर-प्रतीक्षित सच्चाई </ref>! नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ मेंके हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं तेरी जबीन-ए-नियाज़ <ref>विनम्र माथे</ref> में
तरब आशना-ए-ख़रोश <ref>स्वयं को आन्नद-मयी ध्वनि में प्रकट कर </ref> हो तू नवा है महरम-ए-गोश <ref>अपनी कृपा को किसी आवाज़ में प्रकट कर </ref> होवो सुरूर सरूद<ref>स्वर माधुर्य,स्वरावली </ref> क्या के छाया छिपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ओ-साज़ <ref>साज़ की चुप्पी के पर्दे </ref> में
तू बचा बचा के न रख इसे तेरा आईना है वो आईना
के शिकस्ता <ref>टूटा हुआ </ref> हो तो अज़ीज़तर <ref>और भी अधिक प्रिय </ref> है निगाह-ए-आईना-साज़ <ref>शीशागर की दृष्टि </ref> में
दम-ए-तौफ़ कर मक-ए-शम्मा न ये कहा के वो अस्र-ए-कोहन
न तेरी हिकायत-ए-सोज़ में न मेरी हदीस-ए-गुदाज़ में
न कहीं जहाँ में अमन अमाँ<ref>शरण</ref> मिली जो अमन अमाँ मिली तो कहाँ मिलीमेरे जुर्म-ए-ख़ानाख़राब <ref>मेरे भटकाव के अपराध के लिए </ref> को तेरे अज़ोउफ़्वे-ए-बंदा-नवाज़ <ref>दया मय, कृपालू पैरों </ref> में
न वो इश्क़ में रहीं गर्मियाँ न वो हुस्न में रहीं शोख़ियाँ
न वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ <ref>अयाज़ की ज़ुल्फों की लटें भी उतनी घुंघराली नहीं रहीं </ref> में
जो मैं जो सर-ब-सज्दा <ref>प्रार्थना के लिए सर झुकाया</ref> कभी हुआ तो ज़मीं से आने लगी सदा<ref>पुकार </ref>तेरा दिल तो है सनम-आशनाअ <ref>हृदय से मूर्ति-पूजक </ref> तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
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