भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"म्हारी गुदली हथेली मं छालो पड़ गयो /राजस्थानी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=राजस्थानी }} <poem> '''गौरी की…)
(कोई अंतर नहीं)

01:01, 20 जनवरी 2010 का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गौरी की नर्म हथेली पर छाले पड़ गए हैं, वह काम नहीं कर सकती...पर उसे जयपुरिया लहरिया दुपट्टा व मधुपुरिया घाघरा तो चाहिए...
 
म्हारी गुदली हथेली मं छालो पड़ गयो
मधुआ म्हारो जी
मैं पलो नहीं काटूँ सा
घास नहीं खूदे से महाँ सूँ
परले नहीं कटे से
म्हारी भोली सूरत
काली पड़ गी
मधुआ म्हारो जी
रखड़ी भी ले लो थे
थारी बेगडी भी ले लो
म्हाने जेपुरिया लहरयो मंगवादो
जुटड़ा भी ले लेलो जी
थारा बिछुआ भी ले लो
म्हाने मधुआपुर सूं घाघरा मंगवादो
मधुआ म्हारो जी