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डर / कुमार सौरभ

100 bytes added, 05:47, 21 जनवरी 2010
हमहूँ तो सोच रही थी
भोरे-भोरे कौआ क्यों कुचर रहा था
भनसाघर <ref>रसोईघर</ref> के चार <ref>फूस की छत</ref> पर
भानस <ref>भोजन</ref> बनाने
जतन से जुट जाएगी बड़की भौजी
छोटकी तो खाल गप्पे हाँकेगी
करियाई कड़ी मूँछ पर हाथ फेर रहा होगा!!
</poem>
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