"डर / कुमार सौरभ" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार सौरभ |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> निरमलिया जाग गे …) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
हमहूँ तो सोच रही थी | हमहूँ तो सोच रही थी | ||
भोरे-भोरे कौआ क्यों कुचर रहा था | भोरे-भोरे कौआ क्यों कुचर रहा था | ||
− | भनसाघर के चार पर | + | भनसाघर<ref>रसोईघर</ref> के चार<ref>फूस की छत</ref> पर |
− | भानस बनाने | + | भानस<ref>भोजन</ref> बनाने |
जतन से जुट जाएगी बड़की भौजी | जतन से जुट जाएगी बड़की भौजी | ||
छोटकी तो खाल गप्पे हाँकेगी | छोटकी तो खाल गप्पे हाँकेगी | ||
पंक्ति 45: | पंक्ति 45: | ||
करियाई कड़ी मूँछ पर हाथ फेर रहा होगा!! | करियाई कड़ी मूँछ पर हाथ फेर रहा होगा!! | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | {{KKMeaning}} |
11:17, 21 जनवरी 2010 का अवतरण
निरमलिया जाग गे
देख, तेरा दूल्हा आया है
देख तो, क्या-क्या सनेस लाया है!
काकी बोली-
हमहूँ तो सोच रही थी
भोरे-भोरे कौआ क्यों कुचर रहा था
भनसाघर<ref>रसोईघर</ref> के चार<ref>फूस की छत</ref> पर
भानस<ref>भोजन</ref> बनाने
जतन से जुट जाएगी बड़की भौजी
छोटकी तो खाल गप्पे हाँकेगी
दूल्हा भी चुटकी लेने में कम माहिर नहीं
ही...ही... कर निपोड़ेगा
पान के दाग़वाली बत्तीसी
दूरे से छुपकर सुनेह्गी निरमलिया
कुछ समझेगी
कुछ कपार के उपरे सेर बह जाएगा
निरमलिया के लिए
कौतूहल का विषय है दूल्हे की मूँछ
घी लगाकर चमकाता होगा!
सखियाँ कहती हैं बड़भाग तेरे
सोलहवाँ बसंत भी न देखा
ब्याही गई!
निरमलिया के दिमाग़ में
बहुत कुछ चलता रहेगा
सखियों की बातें याद कर रोमांच हो आएगा
भौजियों की चुहल से लजाएगी भी...
...रात गए लेकिन
उसका कलेजा धकधकाने लगेगा
टाँग में जैसे लक़वा मार जाएगा
लाख कोशिशों के बावजूद
उस घर की ओर उठता नहीं रहेगा
जिसमें उसका दूल्हा पलंग पर पलथा मारे
करियाई कड़ी मूँछ पर हाथ फेर रहा होगा!!