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"पुरानी यादें-2 / मनीषा पांडेय" के अवतरणों में अंतर

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कभी कोई नर्म हथेली बनकर
 
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तो कभी सूजे हुए फफोलों का दर्द
 
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ज़िंदा रहती हैं यादें
 
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कहीं नहीं जातीं
 
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जमकर बैठ जाती हैं छाती में
 
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पूरी रात दुखता है सीना
 
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आँखें सूजकर पहाड़ हो जाती हैं
 
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20:47, 26 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

कभी कोई नर्म हथेली बनकर
तो कभी सूजे हुए फफोलों का दर्द
ज़िंदा रहती हैं यादें
कहीं नहीं जातीं
जमकर बैठ जाती हैं छाती में
पूरी रात दुखता है सीना
आँखें सूजकर पहाड़ हो जाती हैं