भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फ़िक्र आदत में ढल गई होगी / अमित" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’ }} {{KKCatGhazal}} <poem> फ़िक्र आदत म…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:26, 26 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
फ़िक्र आदत में ढल गई होगी
अब तबीयत सम्हल गई होगी
गो हवादिस नहीं रुके होंगे
उनकी सूरत बदल गई होगी
जान कर सच नहीं कहा मैंने
बात मुँह से निकल गई होगी
मैं कहाँ उस गली में जाता हूँ
है तमन्ना मचल गई होगी
जिसमें किस्मत बुलन्द होनी थी
वो घड़ी फिर से टल गई होगी
खा़के-माजी की दबी चिंगारी
उसकी आहट से जल गई होगी
खता मुआफ़ के मुश्ताक़ नजर
बेइरादा फ़िसल गई होगी
मुन्तजिर मुझसे अधिक थीं आँखें
बूँद बरबस निकल गई होगी
नाम गुम हो गये हैं खत से ’अमित’
हर्फ़, स्याही निगल गई होगी।