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"वे तुम्हारे पास आएँगे, समझाएँगे / मुकेश जैन" के अवतरणों में अंतर

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'''वे तुम्हारे पास आयेंगे'''
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वे तुम्हारे पास आएँगे समझाएँगे
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उनके अर्थों में तुम सामाजिक नहीं
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हो. तुम नहीं चलते हो उनके पदचिह्नों
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को टटोलते हुए. वे तुम्हें बताएँगे समाज
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के माने. वे तुम्हे भय दिखाएँगे.
  
वे तुम्हारे पास आयेंगे.समझायेंगे.<br>
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वे तुम्हे बताएँगे, तुम विचारों में  
उनके अर्थों में तुम सामाजिक नहीं<br>
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जीते हो. विचार व्यवहारिक नहीं
हो. तुम नहीं चलते हो उनके पदचिह्नों<br>
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होते. फिर, वे तुम्हे बताएँगे कि ये
को टटोलते हुए. वे तुम्हें बतायेंगे समाज<br>
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कुण्ठाओं के बदले हुए रूप हैं. तुम
के माने. वे तुम्हे भय दिखायेंगे.
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इसका विरोध करोगे. तर्क दोगे.
 
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वे कहेंगे बेमानी. और हंस देंगे  
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जीते हो. विचार व्यवहारिक नहीं<br>
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होते. फिर, वे तुम्हे बतायेंगे कि ये<br>
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कुण्ठाओं के बदले हुए रूप हैं. तुम<br>
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इसका विरोध करोगे. तर्क दोगे.<br>
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वे कहेंगे बेमानी. और हंस देंगे<br>
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एक खास अंदाज में.  
 
एक खास अंदाज में.  
  
वे बहुत शक्तिशाली हैं. तुमसे भी<br>
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वे बहुत शक्तिशाली हैं. तुमसे
अधिक. वे तुम्हें तोड़ने का पूरा<br>
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अधिक. वे तुम्हें तोड़ने का पूरा
प्रयास करेंगे. वे तुमसे कहेंगे, तुम<br>
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प्रयास करेंगे. वे तुमसे कहेंगे, तुम
पागल हो. सनकी हो. प्रचार करेंगे. वे<br>
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पागल हो. सनकी हो. प्रचार करेंगे. वे
तुम्हारा उपहास उड़ायेंगे. तुम्हारी<br>
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तुम्हारा उपहास उड़ाएँगे. तुम्हारी  
बातों पर हँसेंगे. वे तुम्हें इसका<br>
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बातों पर हँसेंगे. वे तुम्हें इसका
एहसास करायेंगे. वे तुम्हारे चतुर्दिक<br> 
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एहसास कराएँगे वे तुम्हारे चतुर्दिक  
एक वृत्त बना लेंगे. गिरधर राठी<br>
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एक वृत्त बना लेंगे. गिरधर राठी
की ‘ऊब के अनंत दिन‘की तरह.  
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की ‘ऊब के अनंत दिन‘ की तरह.  
  
फिर धीरे धीरे तुम्हें उनकी बातों पर<br>
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फिर धीरे धीरे तुम्हें उनकी बातों पर
यक़ीन होने लगेगा. और तुम संकोच<br>
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यक़ीन होने लगेगा. और तुम संकोच
से अपने को सिकोड़ने लगोगे. वे<br>
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से अपने को सिकोड़ने लगोगे. वे
चाहेंगे कि तुम इतने सिकुड़ जाओ कि<br>
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चाहेंगे कि तुम इतने सिकुड़ जाओ कि
 
सिफ़र हो जाओ .  
 
सिफ़र हो जाओ .  
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18:46, 27 जनवरी 2010 का अवतरण

वे तुम्हारे पास आएँगे समझाएँगे
उनके अर्थों में तुम सामाजिक नहीं
हो. तुम नहीं चलते हो उनके पदचिह्नों
को टटोलते हुए. वे तुम्हें बताएँगे समाज
के माने. वे तुम्हे भय दिखाएँगे.

वे तुम्हे बताएँगे, तुम विचारों में
जीते हो. विचार व्यवहारिक नहीं
होते. फिर, वे तुम्हे बताएँगे कि ये
कुण्ठाओं के बदले हुए रूप हैं. तुम
इसका विरोध करोगे. तर्क दोगे.
वे कहेंगे बेमानी. और हंस देंगे
एक खास अंदाज में.

वे बहुत शक्तिशाली हैं. तुमसे भ
अधिक. वे तुम्हें तोड़ने का पूरा
प्रयास करेंगे. वे तुमसे कहेंगे, तुम
पागल हो. सनकी हो. प्रचार करेंगे. वे
तुम्हारा उपहास उड़ाएँगे. तुम्हारी
बातों पर हँसेंगे. वे तुम्हें इसका
एहसास कराएँगे वे तुम्हारे चतुर्दिक
एक वृत्त बना लेंगे. गिरधर राठी
की ‘ऊब के अनंत दिन‘ की तरह.

फिर धीरे धीरे तुम्हें उनकी बातों पर
यक़ीन होने लगेगा. और तुम संकोच
से अपने को सिकोड़ने लगोगे. वे
चाहेंगे कि तुम इतने सिकुड़ जाओ कि
सिफ़र हो जाओ .
___________23/12/1991