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"जो मेरे दिल में रहा एक निशानी बनकर / अमित" के अवतरणों में अंतर

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21:48, 28 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

जो मेरे दिल में रहा एक निशानी बनकर।
आज निकला है वही आँख का पानी बनकर।

जिसपे लिक्खे थे कभी हमने वफ़ा के किस्से,
रह गया वो भी सफ़ा एक कहानी बनकर।

एक खु़शबू सी अभी तक जेहन में जिन्दा है,
कभी शेफाली, कभी रात की रानी बनकर।

आग का दरिया भी आया है नजर पानी सा,
दौर मुझपर भी वो गुजरा है जवानी बनकर।

होशियारी भी वहाँ काम नहीं आई ’अमित’,
लूटने वाला चला आया था दानी बनकर।