भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लिहाफ़ों की सिलाई खोलता है / अमित" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’ }} {{KKCatGhazal}} <poem> लिहाफ़ों की …)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:15, 28 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

लिहाफ़ों की सिलाई खोलता है
कोई दीवाना है सच बोलता है।

बेचता है सड़क पर बाँसुरी जो
हवा में कुछ तराने घोलता है।

वो ख़ुद निकला नहीं तपती सड़क पर
पेट पाँवों पे चढ़ कर डोलता है।

पेश आना अदब से पास उसके
वो बन्दों को नज़र से तोलता है।

याद रह जाय गर कोई सुखन तो
उसमे सचमुच कोई अनमोलता है।