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"बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए / राहत इन्दौरी" के अवतरणों में अंतर

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<poem>बीमार को मरज़ की दावा देनी चाहिए , मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
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अल्लाह बरकतों से नवाजेगा इश्क में, है जितनी पूंजी पास लगा देनी चाहिए
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ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं, ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए
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बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए  
मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब, मैं आग हूँ तो आग बुछा देनी चाहिए
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मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
मैं ख्वाब हूँ तो ख्वाब से चौकाईये मुझे, मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए  
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मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद हो बंद, मैं शब् हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
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अल्लाह बरकतों से नवाज़े
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजाये लोग , मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
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गा इश्क़
सच बात कोंन है जो सरे आम कह सके, मैं कह रहा हूँ मैं, मुझको सजा देनी चाहिए
+
में
सौदा यही पे होता है हिन्दुस्तान का, संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए  
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है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए
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ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं
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ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए
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मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
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मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
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मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद, हो
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मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
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मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजायें लोग  
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मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
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सच बात कौन् है जो सरे-आम कह सके
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मैं कह रहा हूँ मुझको सजा देनी चाहिए
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सौदा यही पे होता है हिन्दोस्तान का  
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संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए  
  
 
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16:27, 31 जनवरी 2010 का अवतरण


बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए

अल्लाह बरकतों से नवाज़े
गा इश्क़
 में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए

ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं
ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए

मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए

मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाईये मुझे
मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
 
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद, हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए

मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजायें लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए

सच बात कौन् है जो सरे-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझको सजा देनी चाहिए

सौदा यही पे होता है हिन्दोस्तान का
संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए