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"दो चार बार हम जो कभी / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए<br>
 
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सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए<br><br>
 
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19:06, 17 जनवरी 2008 के समय का अवतरण

दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए

रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए

चाहा था एक फूल ने तड़पे उसी के पास
हमने खुशी के पाँवों में काँटे चुभा लिए

सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियाँ
दुख, बिजलियों की आग में बादल नहा लिए

जब हो सकी न बात तो हमने यही किया
अपनी गजल के शेर कहीं गुनगुना लिए

अब भी किसी दराज में मिल जाएँगे तुम्हें
वो खत जो तुम्हें दे न सके लिख लिखा लिए।