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"मेरे गाँव में आज भी / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

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21:54, 1 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

मेरे गाँव में
आज भी
डूबते सूरज की रोशनी में
रंगीन होते वृक्षों को देखकर
लौट आती हैं गायें
अपने बथानों की तरफ...

बारिश में
तितलियों की तरह
खुलकर नहाते हैं बच्चे...

पहली बार
ससुराल से लौटी
नाईन की मदमाती
बेटी सी हवा
बाँटती है
छम-छम करती
घर-घर में
सुगन्ध का बायना...

बालाओं की आँखों में
कुलाचें भरते हैं हिरण
बूढी़ सधवाओं की
बडी़... सुर्ख टिकुली से
शरमा जाता है चाँद...

नववधूओं के चेहरे की
दीप्ति से
फीकी पड़ जाती है बिजली
बाबा की लाठी की फटकार से
मुँह-अँधेरे ही भाग खडा़ होता है
आलस...

और नाराज़ होकर निकली दादी
चूजों को दाना खिलाती
मुर्गी को देखकर
लौट आती है घर
खोइछे में
मूढी़ और बताशे लेकर...।