भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नहीं बन सकती पुरुष / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / …)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:41, 1 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

चेहरे पर
मूँछें उगाकर
सिर पर
बाँधकर पगडी़
पहन कर
पुरुषों के वस्त्र भी
नहीं बन सकती पुरुष

मकई रानी!

नहीं बदल सकती
अपनी नियति
नहीं बचा सकती
ख़ुद को
भूने
पीसे
और सेंके जाने से...।