भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सहस्रशीर्ष पुरुष / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=अरघान / त्रिलोचन }} जनता का समुद्र वह, ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=अरघान / त्रिलोचन | |संग्रह=अरघान / त्रिलोचन | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
जनता का समुद्र वह, देखा शीश झुकाया, | जनता का समुद्र वह, देखा शीश झुकाया, | ||
− | |||
तभी सहस्रशीर्षापुरुष: याद आ गया, | तभी सहस्रशीर्षापुरुष: याद आ गया, | ||
− | |||
उन आँखों को देखा सहस्राक्ष: गाया । | उन आँखों को देखा सहस्राक्ष: गाया । | ||
− | |||
चरणों को देखा तो सहस्रपात छा गया | चरणों को देखा तो सहस्रपात छा गया | ||
− | |||
प्रतिबिम्बित होकर मानस में । मुझे भा गया | प्रतिबिम्बित होकर मानस में । मुझे भा गया | ||
− | |||
वह विराट दर्शन । मैंने विश्वास पा लिया, | वह विराट दर्शन । मैंने विश्वास पा लिया, | ||
− | |||
वह विश्वास जो विजय के नवगान गा गया । | वह विश्वास जो विजय के नवगान गा गया । | ||
− | |||
गान के स्वरों से मैंने आकाश छा लिया, | गान के स्वरों से मैंने आकाश छा लिया, | ||
− | |||
जहाँ जहाँ जीवन को देखा वहाँ जा लिया, | जहाँ जहाँ जीवन को देखा वहाँ जा लिया, | ||
− | |||
मेरे स्वर जीवन की परिक्रमा करते हैं । | मेरे स्वर जीवन की परिक्रमा करते हैं । | ||
− | |||
गाता जाऊंगा, गाता हूँ, अल्प गा लिया, | गाता जाऊंगा, गाता हूँ, अल्प गा लिया, | ||
− | |||
भूल चूक छोड़ो भी, गीत क्षमा करते हैं । | भूल चूक छोड़ो भी, गीत क्षमा करते हैं । | ||
− | |||
महाकुम्भ में देखा मैंने मानव कानन, | महाकुम्भ में देखा मैंने मानव कानन, | ||
− | |||
मानचित्र था भारत का रेखांकित आनन । | मानचित्र था भारत का रेखांकित आनन । | ||
+ | </poem> |
01:30, 3 फ़रवरी 2010 का अवतरण
जनता का समुद्र वह, देखा शीश झुकाया,
तभी सहस्रशीर्षापुरुष: याद आ गया,
उन आँखों को देखा सहस्राक्ष: गाया ।
चरणों को देखा तो सहस्रपात छा गया
प्रतिबिम्बित होकर मानस में । मुझे भा गया
वह विराट दर्शन । मैंने विश्वास पा लिया,
वह विश्वास जो विजय के नवगान गा गया ।
गान के स्वरों से मैंने आकाश छा लिया,
जहाँ जहाँ जीवन को देखा वहाँ जा लिया,
मेरे स्वर जीवन की परिक्रमा करते हैं ।
गाता जाऊंगा, गाता हूँ, अल्प गा लिया,
भूल चूक छोड़ो भी, गीत क्षमा करते हैं ।
महाकुम्भ में देखा मैंने मानव कानन,
मानचित्र था भारत का रेखांकित आनन ।