"जन्म / राजेश जोशी" के अवतरणों में अंतर
Mukesh Jain (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: '''जन्म''' ऊट की पीठ पर अपनी खटिया बाँध कर चल देंगे अभी बंजारे दूर तक …) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=राजेश जोशी | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:कविता]] | ||
− | ऊट की पीठ पर अपनी खटिया बाँध कर | + | ऊट की पीठ पर अपनी खटिया बाँध कर<br\> |
− | चल देंगे अभी बंजारे | + | चल देंगे अभी बंजारे<br\> |
दूर तक उनके साथ साथ जायेगी मेरी बेचैन आत्मा. | दूर तक उनके साथ साथ जायेगी मेरी बेचैन आत्मा. | ||
− | धूप के साथ सरकती किसी पेड़ की छाँव में | + | धूप के साथ सरकती किसी पेड़ की छाँव में<br\> |
− | डाल देंगे वे अपना डेरा और पकायेंगे | + | डाल देंगे वे अपना डेरा और पकायेंगे<br\> |
− | बाटियाँ और दाल | + | बाटियाँ और दाल<br\> |
− | छाँह के साथ सरकते रहेंगे वे दिनभर | + | छाँह के साथ सरकते रहेंगे वे दिनभर<br\> |
घड़ी की सुइयों के साथ जैसे सरकता रहता है समय. | घड़ी की सुइयों के साथ जैसे सरकता रहता है समय. | ||
− | कितनी अनमोल, कितनी अद्वतीय होती हैं वे साधरण चीजें | + | कितनी अनमोल, कितनी अद्वतीय होती हैं वे साधरण चीजें<br\> |
जिनके सहारे चलता है यह महाजीवन. | जिनके सहारे चलता है यह महाजीवन. | ||
− | वो छोटी सी काली हंडिया जिसमें पकाई जाती है दाल | + | वो छोटी सी काली हंडिया जिसमें पकाई जाती है दाल<br\> |
− | और रख ली जाती है जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ. | + | और रख ली जाती है जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ.<br\> |
− | पुराने अखबार का वो कोई छोटा सा टुकड़ा | + | पुराने अखबार का वो कोई छोटा सा टुकड़ा<br\> |
− | जिसमें बाँध कर रखा जाता है नमक | + | जिसमें बाँध कर रखा जाता है नमक<br\> |
− | इतने सहेज कर रखती है वह बंजारन औरत नमक को | + | इतने सहेज कर रखती है वह बंजारन औरत नमक को<br\> |
काग़ज में बाँध लिया हो जैसे उसने पूरा अरब सागर. | काग़ज में बाँध लिया हो जैसे उसने पूरा अरब सागर. | ||
− | बंजारों ने अभी डेरा डाला है मेरे घर के ऎन सामने | + | बंजारों ने अभी डेरा डाला है मेरे घर के ऎन सामने<br\> |
− | किसी फल की फाँक की तरह आसमान पर लटका है | + | किसी फल की फाँक की तरह आसमान पर लटका है<br\> |
− | कार्तिक की सप्तमी का चाँद | + | कार्तिक की सप्तमी का चाँद<br\> |
− | सड़क के एक किनारे, पान की गुमटियों के पीछे | + | सड़क के एक किनारे, पान की गुमटियों के पीछे<br\> |
− | एक छोटे से टाट की आड़ और लालटेन की मद्धिम रोशनी में | + | एक छोटे से टाट की आड़ और लालटेन की मद्धिम रोशनी में<br\> |
− | बंजारन बहू ने जन्म दिया है अभी अभी | + | बंजारन बहू ने जन्म दिया है अभी अभी<br\> |
एक बच्चे को! | एक बच्चे को! | ||
० अक्टूबर १९८७ | ० अक्टूबर १९८७ |
21:47, 3 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
ऊट की पीठ पर अपनी खटिया बाँध कर<br\> चल देंगे अभी बंजारे<br\> दूर तक उनके साथ साथ जायेगी मेरी बेचैन आत्मा.
धूप के साथ सरकती किसी पेड़ की छाँव में<br\> डाल देंगे वे अपना डेरा और पकायेंगे<br\> बाटियाँ और दाल<br\> छाँह के साथ सरकते रहेंगे वे दिनभर<br\> घड़ी की सुइयों के साथ जैसे सरकता रहता है समय.
कितनी अनमोल, कितनी अद्वतीय होती हैं वे साधरण चीजें<br\> जिनके सहारे चलता है यह महाजीवन.
वो छोटी सी काली हंडिया जिसमें पकाई जाती है दाल<br\> और रख ली जाती है जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ.<br\> पुराने अखबार का वो कोई छोटा सा टुकड़ा<br\> जिसमें बाँध कर रखा जाता है नमक<br\> इतने सहेज कर रखती है वह बंजारन औरत नमक को<br\> काग़ज में बाँध लिया हो जैसे उसने पूरा अरब सागर.
बंजारों ने अभी डेरा डाला है मेरे घर के ऎन सामने<br\> किसी फल की फाँक की तरह आसमान पर लटका है<br\> कार्तिक की सप्तमी का चाँद<br\> सड़क के एक किनारे, पान की गुमटियों के पीछे<br\> एक छोटे से टाट की आड़ और लालटेन की मद्धिम रोशनी में<br\> बंजारन बहू ने जन्म दिया है अभी अभी<br\> एक बच्चे को!
० अक्टूबर १९८७