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"शिवप्रसाद जोशी / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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शिवप्रसाद जोशीः
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टिहरी गढ़वाल के बहुत दूरदराज के गांव जाख में 3 अगस्त को जन्मे शिवप्रसाद जोशी पेशे से पत्रकार हैं। अधिकतर समय टीवी और रेडियो माध्यमों में, समाज, राजनीति और संस्कृति के राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर नियमित लेखन। जीटीवी के आउटपुट हेड, बीआईटीवी में पांच साल काम किया। सहारा समय के उत्तरप्रदेश उत्तराखंड चैनल में बतौर ब्यूरो प्रमुख भी काम किया। पिछले चार साल से जर्मनी में रेडियो डायचे वेले में संपादक। देहरादून और दिल्ली मे शिक्षा। साहित्य जगत में हाल के वर्षों में साहित्य पत्रिका पहल में कई गंभीर आलेखों से ख़ास पहचान मिली। पहली बार कविताएं छपी 1994 में।
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टिहरी गढ़वाल के बहुत दूरदराज के गाँव जाख के स्थाई निवासी और 3 अगस्त को देहरादून में जन्मे शिवप्रसाद जोशी पेशे से पत्रकार हैं। अधिकतर समय टीवी और रेडियो माध्यमों में, समाज, राजनीति और संस्कृति के राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर नियमित लेखन। जी०टी०वी० के आउटपुट हेड, बी०आई०टी०वी० में पाँच साल काम किया। सहारा समय के उत्तरप्रदेश उत्तराखंड चैनल में बतौर ब्यूरो प्रमुख भी काम। जर्मनी में रेडियो डायचे वेले के बॉन दफ़्तर में हिंदी सेवा में संपादक। डॉयचे वेले में पहले नवंबर  2006 से मार्च 2008 तक रहे। फिर जनवरी 2009 में दोबारा शामिल हुए। बी०बी०सी० वर्ल्ड सर्विस के लिए उत्तराखंड से ढाई वर्ष तक प्रतिनिधि संवाददाता भी रहे।
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देहरादून और दिल्ली मे शिक्षा।  
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हाल के वर्षों में साहित्य पत्रिका 'पहल' में प्रकाशित कई गंभीर आलेखों से साहित्य जगत में ख़ास पहचान मिली। पहली बार कविताएँ 1994 में छपीं।
  
 
प्रमुख कृति : नो वन राइट्स टू कर्नल (मार्केज़ की लंबी कहानी का अंग्रेज़ी से अनुवाद),  
 
प्रमुख कृति : नो वन राइट्स टू कर्नल (मार्केज़ की लंबी कहानी का अंग्रेज़ी से अनुवाद),  

22:30, 3 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण


टिहरी गढ़वाल के बहुत दूरदराज के गाँव जाख के स्थाई निवासी और 3 अगस्त को देहरादून में जन्मे शिवप्रसाद जोशी पेशे से पत्रकार हैं। अधिकतर समय टीवी और रेडियो माध्यमों में, समाज, राजनीति और संस्कृति के राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर नियमित लेखन। जी०टी०वी० के आउटपुट हेड, बी०आई०टी०वी० में पाँच साल काम किया। सहारा समय के उत्तरप्रदेश उत्तराखंड चैनल में बतौर ब्यूरो प्रमुख भी काम। जर्मनी में रेडियो डायचे वेले के बॉन दफ़्तर में हिंदी सेवा में संपादक। डॉयचे वेले में पहले नवंबर 2006 से मार्च 2008 तक रहे। फिर जनवरी 2009 में दोबारा शामिल हुए। बी०बी०सी० वर्ल्ड सर्विस के लिए उत्तराखंड से ढाई वर्ष तक प्रतिनिधि संवाददाता भी रहे।

देहरादून और दिल्ली मे शिक्षा।

हाल के वर्षों में साहित्य पत्रिका 'पहल' में प्रकाशित कई गंभीर आलेखों से साहित्य जगत में ख़ास पहचान मिली। पहली बार कविताएँ 1994 में छपीं।

प्रमुख कृति : नो वन राइट्स टू कर्नल (मार्केज़ की लंबी कहानी का अंग्रेज़ी से अनुवाद),

एक कविता संग्रह प्रेस में।

विविध-: ओरहान पामुक के स्नो उपन्यास के एक अंश का अनुवाद: आमने सामने, परंपरा की पुनर्खोज को पुरस्कार: पामुक, भूगोल के तहखाने में-टिहरी की याद, पानी की हवा: मार्केज़ के मकांदो में मुंबई, इज़ाबेल का अंग्रेज़ी से अनुवाद, आइन्श्टाइन से हॉकिंग तक हमारा समय और उससे आगे, ब्रह्मांड और कविता में नया क्या, हम जहां पहुंचे क़ामयाब आए: बॉन के नोट्स, निर्जन द्वीप में संगीत स्टीफ़न हॉकिंग के एक लंबे साक्षात्कार का अनुवाद, ग्राबिएल गार्सिया मार्केज़ अपनी कहानी के भीतर हैं।