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22:40, 3 फ़रवरी 2010 का अवतरण

हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन

अन्तर से मुख से कृति से
निश्छल हो निर्मल मति से
श्रद्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट्र अभिवादन

हम करें राष्ट्र अभिवादन
हम करें राष्ट्र आराधन

अपने हँसते शैशव से
अपने खिलते यौवन से
प्रौढता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट्र का अर्चन

हम करें राष्ट्र का अर्चन
हम करें राष्ट्र आराधन

अपने अतीत को पढ़ कर
अपना इतिहास उलट कर
अपना भवितव्य समझ कर
हम करें राष्ट्र का चिंतन

हम करें राष्ट्र का चिंतन
हम करें राष्ट्र आराधन

है याद हमें युग-युग की
जलती अनेक घटनायें
जो माँ के सेवा पथ पर
आयी बन कर विपदायें

हमनें अभिषेक किया था
जननी का अरि शोणित से
हमने श्रृंगार किया था
माता का अरि मुंडो से

हमने ही उसे दिया था
सांस्कृतिक उच्च सिंहासन
माँ जिस पर बैठी सुख से
करती थी जग का शासन

अब काल चक्र की गति से
वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन दे कर
हम करें पुन: संस्थापन

हम करें पुन: संस्थापन
हम करें राष्ट्र आराधन

हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन


नोट: यह कविता बहुचर्चित टीवी सीरीयल ’चाणक्य’ के एक एपीसोड में प्रयोग में लायी गयी है.