"बादल राग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग ३" के अवतरणों में अंतर
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− | + | सिन्धु के अश्रु! | |
− | सिन्धु के अश्रु ! | + | धरा के खिन्न दिवस के दाह! |
− | धरा के खिन्न दिवस के दाह ! | + | बिदाई के अनिमेष नयन! |
− | बिदाई के अनिमेष नयन ! | + | मौन उर में चिन्हित कर चाह |
− | मौन उर में चिन्हित कर चाह | + | छोड़ अपना परिचित संसार-- |
− | छोड़ अपना परिचित संसार-- | + | सुरभि के कारागार, |
− | सुरभि के कारागार, | + | चले जाते हो सेवा पथ पर, |
− | चले जाते हो सेवा पथ पर, | + | तरु के सुमन! |
− | तरु के सुमन ! | + | सफल करके |
− | सफल करके | + | मरीचिमाली का चारु चयन। |
− | मरीचिमाली का चारु चयन। | + | स्वर्ग के अभिलाषी हे वीर, |
− | स्वर्ग के अभिलाषी हे वीर, | + | सव्यसाची-से तुम अध्ययन-अधीर |
− | सव्यसाची-से तुम अध्ययन-अधीर | + | अपना मुक्त विहार, |
− | अपना मुक्त विहार, | + | छाया में दुख के |
− | छाया में दुख के | + | अंतःपुर का उद्घाटित द्वार |
− | अंतःपुर का उद्घाटित द्वार | + | छोड़ बन्धुओं के उत्सुक नयनों का सच्चा प्यार, |
− | छोड़ बन्धुओं के उत्सुक नयनों का सच्चा प्यार, | + | जाते हो तुम अपने रथ पर, |
− | जाते हो तुम अपने रथ पर, | + | स्मृति के गृह में रखकर |
− | स्मृति के गृह में रखकर | + | अपनी सुधि के सज्जित तार। |
− | अपनी सुधि के सज्जित तार। | + | पूर्ण मनोरथ! आये-- |
− | पूर्ण मनोरथ ! आये-- | + | तुम आये; |
− | तुम आये; | + | रथ का घर्घर-नाद |
− | रथ का घर्घर-नाद | + | तुम्हारे आने का सम्वाद। |
− | तुम्हारे आने का सम्वाद। | + | ऐ त्रिलोक-जित! इन्द्र-धनुर्धर! |
− | ऐ त्रिलोक-जित ! इन्द्र-धनुर्धर ! | + | सुर बालाओं के सुख-स्वागत! |
− | सुर बालाओं के सुख-स्वागत ! | + | विजय विश्व में नव जीवन भर, |
− | विजय विश्व में नव जीवन भर, | + | उतरो अपने रथ से भारत! |
− | उतरो अपने रथ से भारत ! | + | उस अरण्य में बैठी प्रिया अधीर, |
− | उस अरण्य में बैठी प्रिया अधीर, | + | कितने पूजित दिन अब तक हैं व्यर्थ, |
− | कितने पूजित दिन अब तक हैं व्यर्थ, | + | मौन कुटीर। |
− | मौन कुटीर। | + | आज भेंट होगी-- |
− | आज भेंट होगी-- | + | हाँ, होगी निस्सन्देह, |
− | हाँ, होगी निस्सन्देह, | + | आज सदा सुख-छाया होगा कानन-गेह |
− | आज सदा सुख-छाया होगा कानन-गेह | + | आज अनिश्चित पूरा होगा श्रमित प्रवास, |
− | आज अनिश्चित पूरा होगा श्रमित प्रवास, | + | |
आज मिटेगी व्याकुल श्यामा के अधरों की प्यास। | आज मिटेगी व्याकुल श्यामा के अधरों की प्यास। | ||
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00:03, 4 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
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धरा के खिन्न दिवस के दाह!
बिदाई के अनिमेष नयन!
मौन उर में चिन्हित कर चाह
छोड़ अपना परिचित संसार--
सुरभि के कारागार,
चले जाते हो सेवा पथ पर,
तरु के सुमन!
सफल करके
मरीचिमाली का चारु चयन।
स्वर्ग के अभिलाषी हे वीर,
सव्यसाची-से तुम अध्ययन-अधीर
अपना मुक्त विहार,
छाया में दुख के
अंतःपुर का उद्घाटित द्वार
छोड़ बन्धुओं के उत्सुक नयनों का सच्चा प्यार,
जाते हो तुम अपने रथ पर,
स्मृति के गृह में रखकर
अपनी सुधि के सज्जित तार।
पूर्ण मनोरथ! आये--
तुम आये;
रथ का घर्घर-नाद
तुम्हारे आने का सम्वाद।
ऐ त्रिलोक-जित! इन्द्र-धनुर्धर!
सुर बालाओं के सुख-स्वागत!
विजय विश्व में नव जीवन भर,
उतरो अपने रथ से भारत!
उस अरण्य में बैठी प्रिया अधीर,
कितने पूजित दिन अब तक हैं व्यर्थ,
मौन कुटीर।
आज भेंट होगी--
हाँ, होगी निस्सन्देह,
आज सदा सुख-छाया होगा कानन-गेह
आज अनिश्चित पूरा होगा श्रमित प्रवास,
आज मिटेगी व्याकुल श्यामा के अधरों की प्यास।