"बादल राग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग ६" के अवतरणों में अंतर
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− | + | <poem> | |
− | + | तिरती है समीर-सागर पर | |
− | तिरती है समीर-सागर पर | + | अस्थिर सुख पर दुःख की छाया- |
− | अस्थिर सुख पर दुःख की छाया- | + | जग के दग्ध हृदय पर |
− | जग के दग्ध हृदय पर | + | निर्दय विप्लव की प्लावित माया- |
− | निर्दय विप्लव की प्लावित माया- | + | यह तेरी रण-तरी |
− | यह तेरी रण-तरी | + | भरी आकांक्षाओं से, |
− | भरी आकांक्षाओं से, | + | घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर |
− | घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर | + | उर में पृथ्वी के, आशाओं से |
− | उर में पृथ्वी के, आशाओं से | + | नवजीवन की, ऊँचा कर सिर, |
− | नवजीवन की, ऊँचा कर सिर, | + | ताक रहे है, ऐ विप्लव के बादल! |
− | ताक रहे है, ऐ विप्लव के बादल! | + | फिर-फिर! |
− | फिर-फिर! | + | बार-बार गर्जन |
− | बार-बार गर्जन | + | वर्षण है मूसलधार, |
− | वर्षण है मूसलधार, | + | हृदय थाम लेता संसार, |
− | हृदय थाम लेता संसार, | + | सुन-सुन घोर वज्र हुँकार। |
− | सुन-सुन घोर वज्र हुँकार। | + | अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत वीर, |
− | अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत वीर, | + | क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर, |
− | क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर, | + | गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा-धीर। |
− | गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा-धीर। | + | हँसते है छोटे पौधे लघुभार- |
− | हँसते है छोटे पौधे लघुभार- | + | शस्य अपार, |
− | शस्य अपार, | + | हिल-हिल |
− | हिल-हिल | + | खिल-खिल, |
− | खिल-खिल, | + | हाथ मिलाते, |
− | हाथ मिलाते, | + | तुझे बुलाते, |
− | तुझे बुलाते, | + | विप्लव-रव से छोटे ही है शोभा पाते। |
− | विप्लव-रव से छोटे ही है शोभा पाते। | + | अट्टालिका नही है रे |
− | अट्टालिका नही है रे | + | आतंक-भवन, |
− | आतंक-भवन, | + | सदा पंक पर ही होता |
− | सदा पंक पर ही होता | + | जल-विप्लव प्लावन, |
− | जल-विप्लव प्लावन, | + | क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से |
− | क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से | + | सदा छलकता नीर, |
− | सदा छलकता नीर, | + | रोग-शोक में भी हँसता है |
− | रोग-शोक में भी हँसता है | + | शैशव का सुकुमार शरीर। |
− | शैशव का सुकुमार शरीर। | + | रुद्ध कोष, है क्षुब्ध तोष, |
− | रुद्ध कोष, है क्षुब्ध तोष, | + | अंगना-अंग से लिपटे भी |
− | अंगना-अंग से लिपटे भी | + | आतंक-अंक पर काँप रहे हैं |
− | आतंक-अंक पर काँप रहे हैं | + | धनी, वज्र-गर्जन से, बादल! |
− | धनी, वज्र-गर्जन से, बादल! | + | त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे है। |
− | त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे है। | + | जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर |
− | जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर | + | तुझे बुलाता कृषक अधीर, |
− | तुझे बुलाता कृषक अधीर, | + | ऐ विप्लव के वीर! |
− | ऐ विप्लव के वीर! | + | चूस लिया है उसका सार, |
− | चूस लिया है उसका सार, | + | हाड़ मात्र ही है आधार, |
− | हाड़ मात्र ही है आधार, | + | ऐ जीवन के पारावार! |
− | ऐ जीवन के पारावार!< | + | </poem> |
00:11, 4 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
<< पिछला भागतिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुःख की छाया-
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे है, ऐ विप्लव के बादल!
फिर-फिर!
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र हुँकार।
अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा-धीर।
हँसते है छोटे पौधे लघुभार-
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ मिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही है शोभा पाते।
अट्टालिका नही है रे
आतंक-भवन,
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।
रुद्ध कोष, है क्षुब्ध तोष,
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक-अंक पर काँप रहे हैं
धनी, वज्र-गर्जन से, बादल!
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे है।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़ मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!