भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डूब गया दिन / ओम प्रभाकर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रभाकर |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> डूब गया दिन जब तक प…)
 
छो ("डूब गया दिन / ओम प्रभाकर" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(कोई अंतर नहीं)

01:43, 4 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

डूब गया दिन
जब तक पहुँचे तेरे द्वारे।

एक धुँधलका छाया ओर-पास
धूप गाँव-बाहर की छूट गई,
छप्पर-बैठक सब बिल्कुल उदास
पगडंडी दरवाज़े टूट गई,

भारी था मन
हम थे काफ़ी टूटे-हारे।

सूना आँगन, सूनी तिद्वारी
तुलसी का चौरा सूना-सूना।
ऐसे सूनेपन में हमें हुआ
ख़ुद साँसें लेते में दुख दूना।

चौका-बासन
छतें, छज्जे सब अँधियारे।

धीरे-धीरे आँचल ओट किए
भीतर से दीप लिए तुम आईं।
संग-संग एक मौन ज्योति-पुंज
संग-संग एक मलिन परछाईं।

सिहरा आँगन
सिहरे हम, सिहरे गलियारे।