"मौन है क्यों कुछ तो बता लखनऊ शहर ?/ रवीन्द्र प्रभात" के अवतरणों में अंतर
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तुझपर नहीं होता है क्या
प्रदूषणों का असर
मौन है क्यों
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
बढती हुई जनसँख्या
कटते हुये पेंड़
है सडकों पर पडे हुये
कूड़े- करकट के ढ़ेर
घुलता नहीं क्या
तेरी धमनियों में
गंदगी का जहर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
आ रही नदी- नालियों से
कड़वी दुर्गन्ध
लौद्स्पीकर की आवाज़
होती नही मन्द
देखता हूँ रोगियों को
आते- जाते / इधर- उधर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
धुल- धुआं / भीड़- भाड़
शोर- शरावा / चीख- पुकार
रातों की चेन कहाँ
मुआ मछरों की मार
भाग- दौड़/ आपा- धापी में
हो रहा जीवन - वसर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
उनमादियों के नारे
गर्म हवा की चिमनियाँ
दे रही पैगाम ये
खोलना मत खिड़कियाँ
सायरन की चीख से क्यों
मन में उठ जाता है डर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?