"मौन है क्यों कुछ तो बता लखनऊ शहर ?/ रवीन्द्र प्रभात" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात }} {{KKCatKavita}} <poem> तुझपर नहीं होता है…) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<poem> | <poem> | ||
तुझपर नहीं होता है क्या | तुझपर नहीं होता है क्या | ||
− | |||
प्रदूषणों का असर | प्रदूषणों का असर | ||
+ | मौन है क्यों | ||
+ | कुछ तो बता लखनऊ शहर ? | ||
− | |||
− | |||
− | |||
बढती हुई जनसँख्या | बढती हुई जनसँख्या | ||
− | |||
कटते हुये पेंड़ | कटते हुये पेंड़ | ||
− | |||
है सडकों पर पडे हुये | है सडकों पर पडे हुये | ||
− | |||
कूड़े- करकट के ढ़ेर | कूड़े- करकट के ढ़ेर | ||
− | |||
घुलता नहीं क्या | घुलता नहीं क्या | ||
− | |||
तेरी धमनियों में | तेरी धमनियों में | ||
− | |||
गंदगी का जहर | गंदगी का जहर | ||
− | |||
कुछ तो बता लखनऊ शहर ? | कुछ तो बता लखनऊ शहर ? | ||
− | |||
+ | आ रही नदी- नालियों से | ||
कड़वी दुर्गन्ध | कड़वी दुर्गन्ध | ||
− | + | लौडस्पीकर की आवाज़ | |
− | + | ||
− | + | ||
होती नही मन्द | होती नही मन्द | ||
− | |||
देखता हूँ रोगियों को | देखता हूँ रोगियों को | ||
− | |||
आते- जाते / इधर- उधर | आते- जाते / इधर- उधर | ||
+ | कुछ तो बता लखनऊ शहर ? | ||
− | |||
धुल- धुआं / भीड़- भाड़ | धुल- धुआं / भीड़- भाड़ | ||
− | |||
शोर- शरावा / चीख- पुकार | शोर- शरावा / चीख- पुकार | ||
− | + | रातों की चैन कहाँ | |
− | रातों की | + | |
− | + | ||
मुआ मछरों की मार | मुआ मछरों की मार | ||
− | |||
भाग- दौड़/ आपा- धापी में | भाग- दौड़/ आपा- धापी में | ||
− | |||
हो रहा जीवन - वसर | हो रहा जीवन - वसर | ||
− | |||
कुछ तो बता लखनऊ शहर ? | कुछ तो बता लखनऊ शहर ? | ||
− | |||
+ | उन्मादियों के नारे | ||
गर्म हवा की चिमनियाँ | गर्म हवा की चिमनियाँ | ||
− | |||
दे रही पैगाम ये | दे रही पैगाम ये | ||
− | |||
खोलना मत खिड़कियाँ | खोलना मत खिड़कियाँ | ||
− | |||
सायरन की चीख से क्यों | सायरन की चीख से क्यों | ||
− | |||
मन में उठ जाता है डर | मन में उठ जाता है डर | ||
− | |||
कुछ तो बता लखनऊ शहर ? | कुछ तो बता लखनऊ शहर ? | ||
<poem> | <poem> |
17:19, 5 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
तुझपर नहीं होता है क्या
प्रदूषणों का असर
मौन है क्यों
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
बढती हुई जनसँख्या
कटते हुये पेंड़
है सडकों पर पडे हुये
कूड़े- करकट के ढ़ेर
घुलता नहीं क्या
तेरी धमनियों में
गंदगी का जहर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
आ रही नदी- नालियों से
कड़वी दुर्गन्ध
लौडस्पीकर की आवाज़
होती नही मन्द
देखता हूँ रोगियों को
आते- जाते / इधर- उधर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
धुल- धुआं / भीड़- भाड़
शोर- शरावा / चीख- पुकार
रातों की चैन कहाँ
मुआ मछरों की मार
भाग- दौड़/ आपा- धापी में
हो रहा जीवन - वसर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?
उन्मादियों के नारे
गर्म हवा की चिमनियाँ
दे रही पैगाम ये
खोलना मत खिड़कियाँ
सायरन की चीख से क्यों
मन में उठ जाता है डर
कुछ तो बता लखनऊ शहर ?