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"एक ग़ज़ल हिंदी को समर्पित / रवीन्द्र प्रभात" के अवतरणों में अंतर

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दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी -
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दो-तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी  
माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी ।
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माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी।
 
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बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से -
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पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी ।
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पर भँवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी।
 
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सुर -तुलसी और मीरा के सगुन में जो रची -
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कबीरा और बिहारी की फुंकार है हिंदी मेरी ।
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फ्रेंच,इंग्लिस और जर्मन है भले परवान पर -
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आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी ।
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सुर-तुलसी और मीरा के सगुन में जो रची
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कबीरा और बिहारी की फुंकार है हिंदी मेरी।
  
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फ्रेंच,इंग्लिश और जर्मन है भले परवान पर
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आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी।
  
चांद भी है,चांदनी भी,गोधुली- प्रभात भी -
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चाँद भी है,चांदनी भी, गोधूली-प्रभात भी
हरतरफ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी ।
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हर तरफ़ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी।
 
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21:30, 5 फ़रवरी 2010 का अवतरण

दो-तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी
माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी।
 
बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से
पर भँवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी।

सुर-तुलसी और मीरा के सगुन में जो रची
कबीरा और बिहारी की फुंकार है हिंदी मेरी।

फ्रेंच,इंग्लिश और जर्मन है भले परवान पर
आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी।

चाँद भी है,चांदनी भी, गोधूली-प्रभात भी
हर तरफ़ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी।