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"नासमझ यह मोहन ठकुरी / मोहन ठकुरी" के अवतरणों में अंतर

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20:30, 6 फ़रवरी 2010 का अवतरण

उसके अपने कभी अपने नही हुए

अधूरे सपनों को गले लगाकर

बैठा यह मोहन ठकुरी

गमले के कैकटस जैसा

न फूल सकता है, न फैल सकता है!

उसकी हँसी कृत्रिम है
 
अव्यक्त व्यथा-वेदनाओं में लिपटकर

बैठा यह मोहन ठकुरी

किसी के मन में माया बनकर रह नही सकता

किसी की आँखों में आँसू बनकर छलक नही सकता !

(अनुवाद : स्वयं )