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"मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गये / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर

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21:02, 6 फ़रवरी 2010 का अवतरण

मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गए उनसे मिला तो मुझसे उजाले लिपट गए

दरिया जो दरमियान था,गहरा न था मगर पानी में जब पड़े तो मेरे पैर कट गए

आया ख़याले-आशियाँ उड़ते हुए मुझे फैले हुए हवा में,जो पर थे सिमट गए

मेरा फ़साना तुमने सभी को सुना दिया वो दर्दो-ग़म जो मेरे थे,हिस्सों में बंट गए

नींदें उचट गईं मेरी आँखों से और फिर ये हुआ कि ख़्वाब-सलौने उचट गए

देखा जब उसको सामने,रौशन हुए चराग़ दिल के तमाम रास्ते फूलों से पट गए