भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अब चलो ये भी ख़ता की जाए /गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: अब चलो ये भी ख़ता की जाए दिल के दुशमन से वफ़ा की जाए वो ही आए न बहार…)
(कोई अंतर नहीं)

21:13, 6 फ़रवरी 2010 का अवतरण

अब चलो ये भी ख़ता की जाए दिल के दुशमन से वफ़ा की जाए

वो ही आए न बहारें आईं क्या हुई बात पता की जाए

है इसी वक़्त ज़रूरत उसकी बावुज़ू हो के दुआ की जाए

ज़ुल्म भरपूर किए हैं तूने अब अनायत भी ज़रा की जाए

दर्दे-दिल है ये मज़ा ही देगा दर्दे-सर हो तो दवा की जाए