भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लाला क्यों है लाला / पुरुषोत्तम प्रतीक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
सुनो साथियो तुम्हें बताएँ लाला क्यों है लाला
 
सुनो साथियो तुम्हें बताएँ लाला क्यों है लाला
::::इसने ही ईजाद किया था
+
:::इसने ही ईजाद किया था
:::::सबसे पहले ताला
+
::::सबसे पहले ताला
  
 
सुखा दिया इसने सारा अपने मन का पानी
 
सुखा दिया इसने सारा अपने मन का पानी
 
खरे दाम में बेचा करता अपनी बेईमानी
 
खरे दाम में बेचा करता अपनी बेईमानी
::::ताले में जो बन्द पड़ा है
+
:::ताले में जो बन्द पड़ा है
:::::धन है सारा काला
+
::::धन है सारा काला
  
 
रोटी देकर ख़ून चूसना इसका दया-धरम है
 
रोटी देकर ख़ून चूसना इसका दया-धरम है
 
परदेशों को देश बेचने में भी नहीं शरम है
 
परदेशों को देश बेचने में भी नहीं शरम है
::::रहा सदा भारी पलड़े में
+
:::रहा सदा भारी पलड़े में
:::::ये सरकारी साला
+
::::ये सरकारी साला
  
 
कोर्ट-कचहरी अस्पताल या जितने भी दफ़्तर हैं
 
कोर्ट-कचहरी अस्पताल या जितने भी दफ़्तर हैं
 
इसको सब गिरजा, गुरुद्वारे, मस्जिद हैं, मन्दिर हैं
 
इसको सब गिरजा, गुरुद्वारे, मस्जिद हैं, मन्दिर हैं
::::जगह-जगह पर बैठे इसके
+
:::जगह-जगह पर बैठे इसके
:::::ईश्वर अल्ला ताला
+
::::ईश्वर अल्ला ताला
  
  
 
'''रचनाकाल''' : 24 अक्तूबर 1978
 
'''रचनाकाल''' : 24 अक्तूबर 1978
 
</poem>
 
</poem>

02:46, 14 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

सुनो साथियो तुम्हें बताएँ लाला क्यों है लाला
इसने ही ईजाद किया था
सबसे पहले ताला

सुखा दिया इसने सारा अपने मन का पानी
खरे दाम में बेचा करता अपनी बेईमानी
ताले में जो बन्द पड़ा है
धन है सारा काला

रोटी देकर ख़ून चूसना इसका दया-धरम है
परदेशों को देश बेचने में भी नहीं शरम है
रहा सदा भारी पलड़े में
ये सरकारी साला

कोर्ट-कचहरी अस्पताल या जितने भी दफ़्तर हैं
इसको सब गिरजा, गुरुद्वारे, मस्जिद हैं, मन्दिर हैं
जगह-जगह पर बैठे इसके
ईश्वर अल्ला ताला


रचनाकाल : 24 अक्तूबर 1978