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"लिख दिया अपने दर पे किसी ने इस जगह प्यार करना मना है / क़तील" के अवतरणों में अंतर
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11:10, 15 फ़रवरी 2010 का अवतरण
लिख दिया अपने दर पे किसी ने
इस जगह प्यार करना मना है
प्यार अगर हो भी जाए किसी को
इसका इज़हार करना मना है
उनकी महफ़िल में जब कोई आये
पहले नज़रें वो अपनी झुकाए
वो सनम जो खुदा बन गये हैं
उनका दीदार करना मना है
जाग उठ्ठे तो आहें भरेंगे
हुस्न वालों को रुसवा करेंगे
सो गये हैं जो फुरक़त के मारे
उनको बेदार करना मना है
हमने की अर्ज़ ऐ बंदा-परवर
क्यूँ सितम ढा रहे हो यह हम पर
बात सुन कर हमारी वो बोले
हमसे तकरार करना मना है
सामने जो खुला है झरोखा
खा न जाना क़तील कहीं उनका धोखा
अब भी अपने लिए उस गली में
शौक-ए-दीदार करना मना है