भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार=अमीर खुसरो
}}{{KKCatGeet}}<poem>सकल बन (सघन बन) सगन बिन फूल रही सरसों,सरसों।सकल बन (सघन बन) सगन बिन फूल रही....सरसों।अम्बवा फूटे, टेसू फूले, कोयल बोले डार -डार,और गोरी करत शृंगारसिंगार,मलनियां गढवा मलनियाँ गेंदवा ले आइं करसोंआईं कर सों,सकल बन सगन बिन फूल रही...सरसों।
तरह तरह के फूल खिलाए,
ले गढवा हातन गेंदवा हाथन में आए ।आए।निजामुदीन के दरवाजे दरवज़्ज़े पर,
आवन कह गए आशिक रंग,
और बीत गए बरसों ।बरसों।सकल बन सगन बिन फूल रही सरसों ।सरसों।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,324
edits