भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रकृति की ओर / भरत प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: सुना है- ममता के स्वभाववश माता की छाती से झर-झर दूध छलकता है मैं तो…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:25, 17 फ़रवरी 2010 का अवतरण
सुना है- ममता के स्वभाववश माता की छाती से झर-झर दूध छलकता है
मैं तो अल्हड़ बचपन से झुकी हुई सांवली घटाओं में धारासार दूध बरसता हुआ देखता चला आ रहा हूँ।
आत्मविभोर कर देने वाला यह विस्मय मुझे प्रकृति के प्रति अथाह कृतज्ञता से भर देता है।