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15:25, 17 फ़रवरी 2010 का अवतरण

सुना है- ममता के स्वभाववश माता की छाती से झर-झर दूध छलकता है

मैं तो अल्हड़ बचपन से झुकी हुई सांवली घटाओं में धारासार दूध बरसता हुआ देखता चला आ रहा हूँ।

आत्मविभोर कर देने वाला यह विस्मय मुझे प्रकृति के प्रति अथाह कृतज्ञता से भर देता है।