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"खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था / फ़रहत शहज़ाद" के अवतरणों में अंतर
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दहकती आग थी तन्हाई थी फ़साना था | दहकती आग थी तन्हाई थी फ़साना था | ||
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के जैसे मैं कोई लूटा हुआ ख़ज़ाना था | के जैसे मैं कोई लूटा हुआ ख़ज़ाना था | ||
− | ये क्या के चंद ही क़दमों पे थक के बैठ गये | + | ये क्या के चंद ही क़दमों पे थक के बैठ गये<br> |
तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना था | तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना था | ||
− | मुझे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है | + | मुझे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है<br> |
वो कोई ग़ैर नहीं यार एक पुराना था | वो कोई ग़ैर नहीं यार एक पुराना था | ||
− | भरम ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत का जाँ रह जाता | + | भरम ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत का जाँ रह जाता<br> |
ज़रा सी देर मेरा प्यार तो आज़माना था | ज़रा सी देर मेरा प्यार तो आज़माना था | ||
− | ख़ुद अपने हाथ से "शहज़ाद" उस को काट दिया | + | ख़ुद अपने हाथ से "शहज़ाद" उस को काट दिया<br> |
के जिस दरख़्त के टहनी पे आशियाना था | के जिस दरख़्त के टहनी पे आशियाना था |
16:39, 20 फ़रवरी 2010 का अवतरण
ख़ुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था
दहकती आग थी तन्हाई थी फ़साना था
ग़मों ने बाँट लिया मुझे यूँ आपस में
के जैसे मैं कोई लूटा हुआ ख़ज़ाना था
ये क्या के चंद ही क़दमों पे थक के बैठ गये
तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना था
मुझे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है
वो कोई ग़ैर नहीं यार एक पुराना था
भरम ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत का जाँ रह जाता
ज़रा सी देर मेरा प्यार तो आज़माना था
ख़ुद अपने हाथ से "शहज़ाद" उस को काट दिया
के जिस दरख़्त के टहनी पे आशियाना था