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− | + | कविता में यह दन्द-फन्द | |
− | + | छल-छन्द, गन्द-भरभण्ड। | |
− | + | चमचा-कलछुल-अल्टा-पल्टा | |
− | + | जीवन से जयचन्द... ... | |
− | + | आलोचक | |
− | + | ज्यों परमानन्द, आनन्द-कन्द-मतिमन्द... ... | |
− | + | घट-घट में व्यापि डकार | |
− | + | हे खण्ड-खण्ड पाखण्ड | |
− | + | जय हो... जय हो... जय हो... | |
− | + | जय-जय-जय-जय-जय हो... | |
− | + | पों ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ | |
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21:16, 20 फ़रवरी 2010 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक: पाखण्ड-व्रत-कथा रचनाकार: कात्यायनी |
कविता में यह दन्द-फन्द छल-छन्द, गन्द-भरभण्ड। चमचा-कलछुल-अल्टा-पल्टा जीवन से जयचन्द... ... आलोचक ज्यों परमानन्द, आनन्द-कन्द-मतिमन्द... ... घट-घट में व्यापि डकार हे खण्ड-खण्ड पाखण्ड जय हो... जय हो... जय हो... जय-जय-जय-जय-जय हो... पों ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ