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"बंदिनी / ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना" के अवतरणों में अंतर

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है तेरा वहाँ कौन सभी लोग हैं पराए
 
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परदेस की गरदिश में कहीं तू भी खो ना जाए
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काँटों भरी डगर है तू दामन बचाना
 
काँटों भरी डगर है तू दामन बचाना
 
ओ जानेवाले...
 
ओ जानेवाले...

11:47, 21 फ़रवरी 2010 का अवतरण

रचनाकार: गुलज़ार                 

ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना
ये घाट तू ये बाट कहीं भूल न जाना

बचपन के तेरे मीत तेरे संग के सहारे
ढूँढेंगे तुझे गली गली सब ये ग़म के मारे
पूछेगी हर निगाह कल तेरा ठिकाना
ओ जानेवाले...

है तेरा वहाँ कौन सभी लोग हैं पराए
परदेस की गर्दिश में कहीं तू भी खो ना जाए
काँटों भरी डगर है तू दामन बचाना
ओ जानेवाले...

दे दे के ये आवाज़ कोई हर घड़ी बुलाए
फिर जाए जो उस पार कभी लौट के न आए
है भेद ये कैसा कोई कुछ तो बताना
ओ जानेवाले...